featured post

एक अपील

ऐ घर पे बैठे तमाशबीन लोग लुट रहा है मुल्क, कब तलक रहोगे खामोश शिकवा नहीं है उनसे, जो है बेखबर पर तु तो सब जानता है, मैदान में क्यों नही...

Friday 23 November 2012

शिकायत

No comments:
उनकी बेखबरी का आलम तो देखो
लगी है भीषण आग उनके शहर में
और वो अपने महलों में बैठ
मधुर तरानों का लुत्फ़ उठा रहे है

रहनुमा बनके फिरते थे हमारी गलियों में
कहते हुए कि हर मुश्किल में साथ निभाऊंगा
आज जब हमारी ज़िंदगी जहन्नुम हो गई
वो कुर्सी पर बैठ मंद मंद मुस्कुरा रहे है

लंबी फेहरिस्त थी उनकी वायदों की
हमारी तंगहाल ज़िंदगी बदलने की बात करते थे
मौका दिया उनको वायदा निभाने की तो
हमको भूल झोलियाँ अपनी भरे जा रहे है

ईद हो या दिवाली संग होते थे हमारे
चेहरे पर मुस्कुराहट और होठों में दुआ रखते थे
अब दर पर जाते है उनके हाल ए ज़िंदगी कहने तो
मिलना तो दूर, हमसे आँखें चुरा रहे है 

Wednesday 21 November 2012

इसी का नाम ही ज़िंदगी है शायद

1 comment:
बीच मझधार बह रहा हूँ, बिना पतवार के नाव में
ना हमसफ़र है, ना मंजिल का पता
गुमसुम सा, उदास सा, बैठा हूँ इंतज़ार में
कि आए कोई फरिस्ता और मंजिल का पता दे जाये

कभी कभी लगता है, मुझमें जां नहीं है बाकी
पर सर्द हवाएं मेरे जिंदा होने का अहसास करा जाती है
तन्हाई में एक पल भी गुजरता है सदियों की तरह
लहरें तो डराती ही है, अँधेरे का खौफ भी कम नहीं

एक अंजाना डर आँखों से नींद चुरा ले जाती है
जागता हूँ रातों में, जुगुनुओं और तारों के संग
सुबह का उजाला नाउम्मीदगी को करती है थोड़ी कम
पर शाम होते ही उम्मीद का दामन छूट जाता है

इस जलती बुझती उम्मीद की किरण के बीच
अनजाने मंजिल को तलाशना और रास्ता बनाना
डरावने माहौल में थोड़ा सा मुस्कुराना
इसी का नाम ही ज़िंदगी है शायद
इसी का नाम ही ज़िंदगी है शायद 

Monday 19 November 2012

लकीरें

No comments:
उस खुदा ने तो नहीं खींची थी लकीरें इस जमीं पर
क्यों खींच ली लकीरें तुने ऐ इंसान ?
ये जानते हुए भी कि मिट्टी में मिलना है सबको
क्यों बना लिए अलग अलग शमशान ?

देश, मजहब और जाति पर तो बाँट ही लिया
पर क्या फिर भी पूरा ना हुआ तेरा अरमान ?
रंग, लिंग, भाषा और बोली के भेद का
बना रहे हो नए नए कीर्तिमान

मतलब के लिए तो टुकडों पर बाँट दिया
क्या सोचा था इसका अंजाम
धूमिल होगी मानवता सारी
और ना रहेगा मोहब्बत का नामोनिशान

तुम कर लो लाख कोशिश मगर
दिलो के मोहब्बत खत्म ना कर पाओगे ऐ नादान
मानवता और नैतिकता तो बनी ही रहेगी
जब तक खत्म ना हो जाए ये जहान